मित्रो, आज २६ जनवरी भारत की आजादी के पश्चात भारतीय लोकतंत्र के लिए पहला महत्वपूर्ण दिन। आज ही के दिन १९५० में भारतीय संविधान लागू किया गया था।
अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्रकी परिभाषा करते हुए कहा था लोगों की, लोगों के लिए और लोगों द्वारा शासन की एक प्रणाली। भारत की आजादी के बाद लोकतांत्रिक भारत के संविधान को लेकर संविधान समिति ने इसी परिभाषा का पालन करते हुए संविधान का निर्माण किया था। आज जब संविधान लागू होने के ९४ वर्ष पूरे हो गए हैं तब यह सवाल उठता है कि क्या संविधान निर्माण के समय जिस लोकतंत्र की कल्पना की गई थी वह साकार हो रही है? क्या आज वास्तव में जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन का स्वरूप है?
क्या हम वास्तव में लोकतांत्रिक संविधान के अनुसार नागरिकों को मिले अधिकारों का उपयोग कर रहे हैं? क्या हम भ्रष्टाचार का विरोध कर रहे हैं? चुनाव में मतदान करते समय हम ऐसे उम्मीदवारों को मत देते हैं जो अच्छे हों, सही हों और स्थानीय मुद्दों को समझते हों? या फिर हम किसी ओभ या लालच के वशमें मत का दुरुपयोग कर रहे हैं? क्या हम अपने आसपास हो रहे गलत काम विरोध करते हैं?
कुछ साल पहले सूरत में कोचिंग क्लास में आग लगने की घटना, बलात्कार की घटनाएँ, मोरबी जुलते पुलकी दुर्घटना, हाल ही में वडोदरा में नाव डूबने की घटना और हमारे आसपास होने वाली ऐसी कई घटना – दुर्घटनाओ के खिलाफ हम कभी आवाज़ उठाते हैं? या घटना के समय बड़ा विरोध जताकर फिर शांत हो जाते हैं?
आज गणतंत्र दिवस पर आत्ममंथन की जरूरत है कि क्या भारत सचमुच एक लोकतांत्रिक गणराज्य है? क्या शासन वास्तव में जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा है? और अगर इन सवालों का जवाब हमे ना मे मिल रहा है, तो इसे 'हां' में बदलने के लिए किसी और को नहीं बल्कि हमे खुद को ही जागना होगा। कहीं न कहीं हम अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के बाद भी गुलामी की मानसिकता से बाहर नहीं आ पाये हैं।
उठो, जागो और देश के लोकतंत्र को सही मायने में गणतंत्र बनाने की दिशा में कदम बढ़ाओ।
जय हिन्द।
जय भारत।
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